मिलिए एक अनूठे संत से जिनका नाम था – गुरजिएफ
गुरजिएफ एक शानदार गुरु थे, लेकिन उन्हें हमेशा एक बदमाश संत के रूप में जाना गया। बदमाश, लेकिन संत। उनके तौर-तरीके बड़े उग्र थे और लोगों के साथ उन्होंने कई पागलपन भरे काम किए, लोगों के साथ कई चालें चलीं जिन्हें बर्दाश्त करना काफी मुश्किल था। सद्गुरु सुना रहे हैं गुरजिएफ की कहानी।
इंग्लैंड में उनकी अच्छी खासी पैठ थी। जब वह बोलते थे तो लोग उन्हें सुनना चाहते थे। अगर किसी शाम छह बजे गुरजिएफ बोलने वाले होते तो लंदन के किसी बड़े से हॉल में पांच सौ लोग इकट्ठे हो जाते। अगर कोई एक मिनट की देरी से भी आता, तो उसे दरवाजे बंद मिलते। तो लोग शाम के ठीक छह बजे आ जाते और इंतजार करने लगते। साढ़े छह, सात, आठ, नौ बज जाते। लोग इंतजार करते रहते। हर थोड़ी देर बाद गुरजिएफ के शिष्य आते और कहते कि वह बस आ ही रहे हैं। इस तरह लोग दस बजे तक इंतजार करते रहते।
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दस बजे अचानक शिष्य आते और बोलते कि गुरजिएफ आज नहीं बोलेंगे। आज रात बारह बजे वह किसी दूसरे शहर में बोलने जा रहे हैं, जो यहां से सौ किलोमीटर दूर है। ऐसे में उन पांच सौ लोगों में से करीब पचास लोग उस दूसरे शहर के लिए निकल पड़ते और बाकी लोग थक कर घर लौट जाते। दूसरे शहर में भी ये पचास लोग सुबह तक इंतजार करते रहते। सुबह-सुबह फिर शिष्य आ कर बताते कि गुरजिएफ यहां नहीं बोलेंगे। वह दोपहर बारह बजे किसी दूसरे स्थान पर बोलने जा रहे हैं। अब पचास में से केवल पांच लोग वहां पहुंचते। अंत में गुरजिएफ उनके सामने आते और बोलते- अब ठीक है। मैं बस इन्हीं पांच लोगों से बात करना चाहता था। बाकी सभी लोग मनोरंजन के लिए आए थे। अच्छा है कि वे लोग यहां से चले गए। फिर वे उन पांच लोगों से बातचीत करते।
जर्मनी में उन्होंने एक आश्रम खोला, जिसे कैंप के रूप में जाना जाता था। यूरोपीय समाज के उच्च वर्ग के लोग इन कैंपों में आए। ये वो लोग होते थे जिन्होंने अपने जीवन में कभी काम नहीं किया था। इन लोगों को वहां फावड़े, कुल्हाड़ी दे दिए जाते और फिर गुरजिएफ उनसे कहते- “आज आपको यहां खाई खोदनी है, पूरा जोर लगाकर, दोपहर के भोजन के लिए भी आपको रुकना नहीं है।” सभी लोग खुदाई चालू कर देते, क्योंकि अगर गुरु जी कुछ कह रहे हैं तो उसका कुछ न कुछ मतलब होगा। शाम होते होते वे सभी थककर चूर हो जाते। उनके शरीर में दर्द होने लगता। गुरजिएफ जब देखते कि वे लोग अब और नहीं सह सकते तो कहते, ‘अच्छा चलो, थोड़ा और खोदो और फिर गड्ढे को भर कर आ जाओ।’ लोग पागल हो जाते। तब तक करीब नब्बे फीसदी लोग तो अपनी गाड़ियों से वहां से निकल लेते। इसके बाद गुरजिएफ बचे हुए दस फीसदी लोगों के साथ अपना वास्तविक काम शुरू करते।
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एक व्यक्ति जिसने गुरजिएफ को मशहूर बना दिया, उसका नाम था ओसपिंस्की। आप हमेशा यह पाएंगे कि ज्यादातर ज्ञानी लोगों के भीतर इतनी क्षमता नहीं होती कि वे अपने आप ही मशहूर हो जाएं। अपने संदेश के प्रचार प्रसार के लिए उन्हें एक अच्छे शिष्य की जरूरत होती है, क्योंकि हो सकता है कि दुनिया के तौर-तरीकों से बखूबी निबटने में वे माहिर न हो। आज हर कोई रामकृष्ण परमहंस के बारे में बात कर रहा है। अगर विवेकानंद न होते तो रामकृष्ण कहीं खो गए होते। उन्हें भुला दिया गया होता। तो गुरजिएफ को ओसपिंस्की मिल गया। ओसपिंस्की अपने आप में काफी मशहूर था। वह एक महान दार्शनिक, गणितज्ञ और बड़ा बुद्धिजीवी था। उसने सत्य पर एक किताब लिखी, जो सत्रह सौ से भी ज्यादा पृष्ठों की थी।
जब वह गुरजिएफ से मिलने गया, तो उसे लंबा इंतजार करना पड़ा। करीब तीन से चार दिन तक वह उनसे मिल न पाया। ऐसा नहीं था कि गुरजिएफ किसी काम में व्यस्त थे, बस वह ओसपिंस्की को इंतजार कराना चाहते थे। घर के भीतर वह खाली समय बिता रहे थे, लेकिन ओसपिंस्की को उन्होंने वक्त नहीं दिया। ओसपिंस्की इससे चिढ़ गया। अंत में ओसपिंस्की को गुरजिएफ से मिलने का समय मिला। गुरजिएफ ने उससे कहा, ‘तुमने बहुत सी किताबें लिखी हैं इसलिए तुम बहुत कुछ जानते हो। जो कुछ तुम जानते हो, उसी के बारे में दोबारा बात करके समय बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है।’ एक काम करो- एक पेंसिल और कागज का एक टुकड़ा पकड़ाते हुए बोले, ‘इस पर वे सभी बातें लिख दो जो तुम जानते हो। हम उन चीजों के बारे में बात करेंगे जो तुम नहीं जानते।’
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इस बात से ओसपिंस्की को बड़ी बेइज्जती महसूस हुई, लेकिन पेंसिल और कागज लेकर वह अपने गुरु के पास बैठ गया और बस यूं ही देखता रहा। घंटों बीत गए। दोनों वहीं बैठे रहे, लेकिन ओसपिंस्की एक भी शब्द उस कागज पर नहीं लिख सका। वह बिल्कुल खोया सा महसूस करने लगा। आंखों में आंसू भर आए, फिर वह बोला, ‘मैं वास्तव में कुछ नहीं जानता।’ गुरजिएफ ने कहा, ‘तुम कुछ नहीं जानते? लेकिन मैंने तो सुना है कि तुमने सत्य पर सत्रह सौ पृष्ठों की किताब लिखी है। मुझे नहीं पता कि तुमने सत्य को सत्रह सौ पृष्ठों में कैसे फैला दिया। वह तो बिल्कुल हल्का हो गया होगा।’ ओसपिंस्की रोने लगा और उसने खुद को समर्पित कर दिया।
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गुरजिएफ ने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसके बाद शुरू हुई असली यातनाएं। ओसपिंस्की बड़ा हठी किस्म का बुद्धिजीवी था। उसके साथ समस्या यह थी कि वह काफी शिक्षित था। उसका अध्ययन बहुत ज्यादा था। उसका अहम बड़ा परिष्कृत था। मोटे घमंड को तोड़ा जा सकता है लेकिन परिष्कृत किस्म के अहम फिसलकर निकल जाने वाले होते हैं।
गुरजिएफ ने ओसपिंस्की के साथ बड़ी बेतुकी चालें चलीं और उसे पागल कर दिया। एक बार गुरजिएफ अमेरिका में भाषण देने जा रहे थे। वहां पहुंचने के लिए वे दोनों साथ में रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे। गुरजिएफ जो भी बोलते थे, ओसपिंस्की उसका एक-एक शब्द लिख लेता था, क्योंकि वह उनकी कही गई बातों का बड़ा संकलन बनाना चाहता था। गुरजिएफ के बारे में ज्यादा से ज्यादा किताबें ओसपिंस्की द्वारा ही छापी गईं। उस समय एक समुद्री किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंचने के लिए अमेरिकी ट्रेनों को तीन-चार दिन लग जाते थे। इस दौरान लंच या डिनर के लिए जब वे पैंट्री कार में आए, अचानक गुरजिएफ ऐसे व्यवहार करने लगे, जैसे वह नशे में हों। ओसपिंस्की ने गुरजिएफ को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेज पर रखा शराब का एक गिलास उठाया और उसे एक महिला के सिर पर उड़ेल दिया। महिला चीख पड़ी। सभी लोग गुरजिएफ को ट्रेन से बाहर फेंक देना चाहते थे, लेकिन ओसपिंस्की सभी को रोकने लगा और बोला, ‘नहीं ऐसा मत कीजिए। यह ज्ञानी पुरुष हैं। यह नशे में नहीं हैं। यह ज्ञानी हैं।’ ओसपिंस्की ने किसी तरह स्थिति को संभाला और किसी तरह गुरजिएफ को वापस केबिन में लाकर उनसे कहा कि यह आप क्या कर रहे हैं?
केबिन में पहुंचते ही गुरजिएफ शांति से बैठ गए। ओसपिंस्की ने उन्हें चेतावनी दी और कहा, ‘कृपा करके दोबारा ऐसा मत कीजिए। मैं फिर से ऐसी स्थिति को नहीं संभाल पाऊंगा। चलिए अब खाना खाते हैं। मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया है।’ वे दोनों फिर से खाना खाने चले गए। जैसे ही वे पैंट्री कार में पहुंचे, गुरजिएफ ने फिर से ऐसे व्यवहार किया, जैसे वह नशे में हों। उन्होंने एक सूटकेस उठाकर चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया। इस पर हर कोई गुस्से में भर गया। जैसे-तैसे ओसपिंस्की गुरजिएफ को उठाकर केबिन में लाया और उनसे कहा, ‘आपने फिर वही हरकत की! आपने उस आदमी का सूटकेस बाहर फेंक दिया। अब उस आदमी का क्या होगा?’
गुरजिएफ ने कहा, ‘चिंता मत करो। वह उसका नहीं, तुम्हारा सूटकेस था।’ ओसपिंस्की सिर पकड़कर बैठ गया और बोला, ‘उस सूटकेस में मेरी महीनों की मेहनत थी। मैंने जो भी किया है, वह सब उसमें था। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? ‘गुरजिएफ बोले, ‘चिंता क्यों करते हो? मैंने तुम्हारा सारा काम यहां रख दिया है और केवल सूटकेस बाहर फेंका है। ‘ओसपिंस्की के साथ वह ऐसी हरकतें करते रहते थे, जिनकी वजह से ओसपिंस्की पागल हो उठा।
रूसी क्रांति जब अपने उफान पर थी और प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हो रही थी, उस वक्त यात्रा करना जोखिम से भरा होता था। उस वक्त ओसपिंस्की इंग्लैंड में था और गुरजिएफ रूस के किसी ग्रामीण इलाके में थे। उन्होंने ओसपिंस्की को एक टेलिग्राम भेजकर तुरंत आने को कहा। गुरु ने बुलाया तो ओसपिंस्की को जाना ही था। ओसपिंस्की सब कुछ छोड़कर चल पड़ा। तमाम मुश्किलों से गुजरते हुए और खतरों से खेलते हुए ओसपिंस्की ने यूरोप और रूस की यात्रा की। जब वह गुरजिएफ के पास पहुंचा तो उसने सोचा कि जरूर कोई बेहद अहम बात होगी। गुरजिएफ ने उसे देखा और बोले, ‘अच्छा आ गए तुम। चलो ठीक है, अब वापस चले जाओ। ‘इस बार तो ओसपिंस्की को बड़ा गुस्सा आया और वह गुरजिएफ को छोड़ कर चला गया। इस समय तक वह गुरजिएफ की प्रशंसा में कुछ किताबें लिख चुका था। इसके बाद उसने गुरजिएफ की निंदा करते हुए एक किताब लिखी। गुरजिएफ ने कहा, ‘कितना बेवकूफ है! मैंने कहा था कि वापस जाओ। अगर वह वापस चला जाता, तो उसे ज्ञान की प्राप्ति हो गई होती। ज्ञान प्राप्त करने के वह कितना नजदीक था, लेकिन बेवकूफ ने मौका गंवा दिया।’
इन गुरुओं के काम करने के अलग-अलग तरीके होते हैं। लेकिन कुल मिलाकर लक्ष्य यही होता है कि ऐसी तीव्रता आपके भीतर पैदा कर दी जाए कि आप संपूर्ण हो जाएं।
Gurdjieff was a great master, but he was always known as a rogue saint. Punk, but Saints. She is great with people, they were furious and many crazy things, with people who have many tricks was too difficult to bear. Are master heard the story of Gurdjieff.
In England he was a significant penetration. When he spoke, people wanted to hear them. Gurdjieff at six in the evening, then someone speaking in London five hundred people were gathered in a large hall. If someone comes with a delay of a minute, then shut the door to meet him. So people tend to come at six in the evening and just seem to wait. Thirty six, seven, eight, nine are ringing. People keep waiting. Every little while later, a disciple of Gurdjieff come and say that he’s just going to come. Such people continue to wait until ten o’clock.
Gurdjieff disciples suddenly come and speak at ten o’clock today will not say that. Twelve o’clock tonight he going to speak in another city, which is a hundred kilometers from here. So, those five hundred people, about fifty people that set out to another city and the others returned home tired. In another city, keep these five guys wait till morning. Then came the morning show disciple of Gurdjieff here will not say that. She twelve noon are speaking to another location. Now only five of fifty people arrived. Finally Gurdjieff to come and speak to him right now. I just wanted to talk to these five people. The rest came for entertainment. Good that they moved here. Then they talked to five people.
He opened an ashram in Germany, which was known as Camp. European upper class of society come into these camps. These were people who had never worked in their lives. These people there, shovel, ax are given and then Gurdjieff Khte- him, “Today you have a gap burin, emphasized by, for lunch you do not stop.” All men dig turn on, because if the master G Some are saying something then it would make sense. There are evening they are all exhausted. His body is to be in pain. Gurdjieff when people see that they can not bear it anymore, then say, ‘Well, let’s dig a little more and come back to fill the pit. “People go crazy. By then, nearly ninety percent of people take their cars to get out of. The remaining ten per cent of the Gurdjieff begin their real work.
A person who has made known to Gurdjieff, his name Ospinski. You always will find that most knowledgeable people are not so much potential in that they automatically become famous. To promote their message in need of a good pupil, because maybe they cope well with the ways of the world are not expert. Today everyone is talking about Ramakrishna. If not, then Ramakrishna Vivekananda would have lost. They would have been forgotten. So Gurdjieff got Ospinski. Ospinski in itself was quite famous. He was a great philosopher, mathematician and great intellectuals. He has written a book on truth, more than a hundred pages was seventeen.
When he went to see Gurdjieff, he had to wait long. About three to four days, she did not meet him. It was not that Gurdjieff were busy in some work, just that he wanted to wait Ospinski. Indoors she were having free time, but when he did not Ospinski. Ospinski it was irritated. Finally Ospinski found the time to meet Gurdjieff. Gurdjieff said to him, ‘You have written many books, so you know so much. Whatever you know, talking again about the same time, there is no point to waste. “One thing is a pencil and a piece of paper Pakdhate-A, said,” And they let you write things which you know . We’ll talk about those things you do not know which. ”
The biggest insult to the Ospinski felt, but with pencil and paper, he sat next to his master and just casually watched. Hours passed. Both are sitting right there, but Ospinski could not write a single word on the paper. He began to feel a bit lost at all. Tears came across, then he said, ‘I really do not know anything. “Gurdjieff said,” You know nothing? But I have heard that you have written a book of truth seventeen hundred pages. I do not know how you spread the truth in the seventeen hundreds of pages. He must have been quite mild. “Ospinski wept and she surrendered herself.
Gurdjieff made him my pupil and then the real torture began. Ospinski of major persistent intellectuals. The problem with him was that he was very educated. The study was too much. His ego was bigger refined. Fat can be broken but boast sophisticated variety are the key slipped out.
Gurdjieff’s Ospinski big wilder tricks and made him mad. Gurdjieff were going to the US to speak at once. Once there, they were traveling together by train. Gurdjieff also spoke, Ospinski takes to write his one term because he said he wanted to create a large collection of things. More and more books about Gurdjieff were published by Ospinski. At that time, the other side to reach the shore of the trains used to take three to four days. The pantry car when they came in for lunch or dinner, Gurdjieff suddenly began to behave as if he’s drunk. Ospinski tried to control the Gurdjieff, but he put on the table, raised a glass of wine and poured it on the head of a woman. The woman had to scream. Gurdjieff wanted to throw everyone out of the train, but Ospinski prevent all thought and said, ‘No, do not do that. The wise men. It has not drunk. It has the knowledge. “Ospinski somehow and some way handled the situation by bringing the cabin back to Gurdjieff told them what you’re doing?
Sat quietly in the cabin as soon as Gurdjieff. Ospinski warned them and said, ‘Please do not do that again. I shall not handle such a situation again. Now eat. I have not eaten anything since morning. “They both went back for dinner. As soon as they arrived in pantry cars, Gurdjieff was again behaving as if he is drunk. He picked up a suitcase thrown out of moving train. Everyone was angry over this. Gurdjieff took Ospinski somehow brought into the cabin and told him, ‘You think of doing the same again! You threw out the man’s suitcase. What about that guy? ‘
Gurdjieff said, ‘Do not worry. That’s not her, it was your suitcase. ‘Ospinski sat clutching head and said,’ that my suitcase had worked months. Whatever I have done, all that was therein. How can you do that? “Gurdjieff said, ‘do you worry? I’ve put all your work here and the suitcase is thrown out. “With Ospinski he lived halfway, by which Ospinski gone crazy.
When the Russian revolution at its boom and the beginning of World War I was growing up, that time travel was risky. Ospinski was in England at the time and Gurdjieff were in a rural area of Russia. He immediately sent a telegram to Ospinski to come. The master was called to go to Ospinski. Ospinski everything was going to leave. Passing through all the difficulties and dangers, Europe and Russia visited Ospinski play. When he came to Gurdjieff he thought he must be a very important thing. Gurdjieff looked at that and said, ‘You have come good. Okay, now go back. “The time to Ospinski was very upset and he left the Gurdjieff. By this time he had finished writing a few books in praise of Gurdjieff. He then wrote a book condemning Gurdjieff. Gurdjieff said, “You idiot! I said get back. If he goes back, he would have attained enlightenment. Knowing how close he was to receive, but stupid he missed the opportunity. ”
These gurus are different ways of working. But the overall aim is that such intensity that you’re perfect to be created within you.
Muje jaggi saduruse milana he.aursant ko bhi milayaye.