इस बात से शायद ही कोई इनकार कर सकता है कि आज के दौर में किशोरावस्था में कदम रखते ही बच्चे सेक्स या शारीरिक संबंधों के प्रति दिलचस्पी लेने लगते हैं और उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ने लगती है।
उनके भीतर पनप रही ऐसी आकांक्षाएं और अनैतिक इच्छाएं उन्हें एक नकारात्मक रास्ते पर ले जाती हैं और आगे चलकर वे अपने परिवार, स्वयं अपने और समाज के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर बैठते हैं।
व्यक्ति के भीतर कामवासना और शारीरिक संबंधों के प्रति उनकी अत्याधिक रुचि समाज की नजरों में तो गलत है ही लेकिन धार्मिक दृष्टि से भी इंसान के भीतर पनप रहा लस्ट भी उसे अंधकार की खाई में लेकर चला जाता है।
यह बात तो आप जानते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों में जीवन के हर भाग और इंसान की हर जरूरत को विस्तृत तरीके से परिभाषित किया गया है। इंसान की मौलिक जरूरतों का स्वरूप और उसकी उपयोगिता को भी व्यवस्थित तरीके से पिरोया गया है।
लेकिन शायद आप इस बात से अनजान हों कि इंसान के खान-पान, रहन-सहन, पारिवारिक और नैतिक जिम्मेदारियों के अलावा उसके जीवन में सेक्स या शारीरिक संबंधों की उपयोगिता को भी हमारे धर्म ग्रंथों में नियम-कायदों में बांटा गया है।
धार्मिक और सामजिक दृष्टि से सेक्स एक पूर्णत: निषेध शब्द है जिसका सार्वजनिक जीवन में उल्लेख करना तक भी पाप समझा जाता है लेकिन हिन्दू धर्म समेत अन्य कई प्रमुख पंथों में सेक्स और लस्ट को स्थान दिया गया है।
इतना ही नहीं शारीरिक इच्छाओं के विकराल स्वरूप, जिसे आम बोलचाल की भाषा में लस्ट कहा जाता है, को अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार परिभाषित कर यह बताया गया है कि लस्ट की राह पर चलने वाले व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार होता है।
बौद्ध धर्म में लस्ट को जीवन और खुशियों की राह का सबसे बड़ा बाधक बताया गया है, इतना ही नहीं इस तरह की काम वासना को ‘सबसे बड़े अपराध’ की संज्ञा तक दी गई है। बौद्ध धर्म के अनुसार जो इंसान अपने जीवन में कामुकता को जगह देता है उसे पूरी उम्र मानसिक और शारीरिक पीड़ा को झेलना पड़ता है।
कैथलिक धर्म के अनुसार विवाहित जीवन से इतर किसी अन्य व्यक्ति के प्रति काम-वासना रखना एक अपराध है। ये विवाह से जुड़े सभी नियमों को ताक पर रख देता है।
इसके अलावा कैथलिक धर्मावलंबियों के अनुसार अनियंत्रित शारीरिक इच्छाओं को लस्ट के दायरे में रखा जा सकता है, जो किसी भी इंसान के जीवन के लिए घातक साबित हो सकती है।
गीतोपदेश देते समय भगवान विष्णु के अवातर, श्रीकृष्ण ने कहा था कि काम-वासना में लिप्त इंसान स्वयं अपने लिए नर्क के द्वार खोल देता है।
शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति को ही अपने जीवन का ध्येय बना लेने वाला इंसान जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सकता और अपना सर्वनाश अपने ही हाथ से कर लेता है।
इस्लाम धर्म में किसी भी प्रकार की कामोत्तेजक गतिविधियां निषेध हैं। इतना ही नहीं इन गतिविधियों को पसंद भी नहीं किया जाता क्योंकि आगे चलकर यही बलात्कार, व्यभिचार को जन्म देती हैं। इस्लाम ब्रह्मचर्य को समर्थन नहीं देता और सेक्स को पूर्णत: विवाह के दायरे में रखता है।
सिख धर्म में काम-वासना को उन मुख्य पांच आधारभूत अपराधों के बीच रखा गया है जो व्यक्ति को गर्त की खाई में धकेल देते हैं। इन पांच अपराधों में लस्ट के अलावा क्रोध, अहम, लालच और लगाव शामिल हैं।
इसके अलावा अनियंत्रित शारीरिक इच्छाओं जो आगे चलकर बलात्कार जैसे बेहद घृणित और अमानवीय अपराध को जन्म देती हैं, को पाप माना गया है।
हिन्दू धर्म की एक प्रमुख शाखा ब्रह्मकुमारी, कामुकता को नर्क का द्वार तो मानती ही है लेकिन साथ ही इसे इंसानियत के ऊपर एक गहरा आघात भी माना जाता है।